Sunday, July 12, 2009

जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!

जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!


कब यहाँ से वहाँ.....कब कहाँ से कहाँ ,
कितनी आवारा है ये मेरी जिंदगी !!
जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!
कभी बनती सबा कभी बन जाती हवा ,
कितने रंगों भरी है मेरी ये जिंदगी !!
जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!
नाचती कूदती-चिडियों सी फूदती ,
चहचहाती-खिलखिलाती मेरी जिंदगी !!
जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!
याद बनकर कभी,आह बनकर कभी ,
टिसटिसाती है अकसर मेरी जिंदगी !!
जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!
जन्म से मौत तक,खिलौनों से ख़ाक तक
किस तरह बीत जाती है ये तन्हाँ जिंदगी !!
जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!


मुश्किलें......!!

मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...

जिनके हाथ इतने मजबूत हैं कि

तोड़ सकते हैं जो किसी भी गर्दन....!!

मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...

जो कर रहे हैं हर वक्त-

किसी ना किसी का.....

या सबका ही जीना हराम....!!

मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...

जिनके लिए जीवन एक खेल है...

किसी को मार डालना ......

उनके खेल का इक अटूट हिस्सा !!

मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...

जो देश को कुछ भी नहीं समझते...

और देश का संविधान....

उनके पैरों की जूतियाँ....!!

मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...

जो सब कुछ इस तरह गड़प कर रहे हैं...

जैसे सब कुछ उनके बाप का हो.....

और भारतमाता !!........

जैसे उनकी इक रखैल.....!!

मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...

जिनको बना दिया गया है...

इतना ज्यादा ताकतवर.....

कि वो उड़ा रहे हैं हर वक्त.....

आम आदमी की धज्जियाँ.....

और क़ानून का सरेआम मखौल.....!!

...........दरअसल ये मुश्किलें......

हम सबके ही साथ हैं.....

मगर मुश्किल यह है....

कि..............

हमें जिनके साथ जीने में.....

अत्यन्त मुश्किलें हैं.....

उनको.........


कोई मुश्किल ही नहीं......!!??


अब हम यहाँ रहें कि वहाँ रहें........!!

अपने आप में सिमट कर रहें

कि आपे से बाहर हो कर रहें !!

बड़े दिनों से सोच रहे हैं कि

हम अब यहाँ रहें या वहाँ रहें !!

दुनिया कोई दुश्मन तो नहीं

दुनिया को आख़िर क्या कहें !!

कुछ चट्टान हैं कुछ खाईयां

जीवन दरिया है बहते ही रहे !!

कुछ कहने की हसरत तो है

अब उसके मुंह पर क्या कहें !!

जो दिखायी तक भी नहीं देता

अल्ला की बाबत चुप ही रहें !!

बस इक मेहमां हैं हम "गाफिल "

इस धरती पे तमीज से ही रहें !!

Wednesday, July 8, 2009

गरज-बरस प्यासी धरती को फिर पानी दे मौला


गरज-बरस प्यासी धरती को फिर पानी दे मौला

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
गरज-बरस प्यासी धरती को फिर पानी दे मौला
चिडियों को दाने , बच्चों को , गुडधानी दे मौला !!

कई दिनों से आँखें पानी को तरस रही थीं और अब जब पानी बरसा तो कई दूसरी आँखें पानी से तर हो गयीं हैं,पानी उनकी झोपड़-पट्टियों को लील लिए जा रहा है....पानी ,जो सूखे खेतों को फसलों की रौनक लौटने को बेताब है,वहीं शहरों में गरीबों को लील जाने को व्यग्र...!!पानी को कतई नहीं पता है कि उसे कहाँ बरसना है और कहाँ नहीं बरसना !!
शायर ने कहा भी तो है, "बरसात का बादल है.....दीवाना है क्या जाने,
किस राह से बचना है,किस छत को बिगोना है !!
तो प्यारे दोस्तों ,यूँ तो प्रकृति हमारी दोस्त है...और सदा ही दोस्त ही बनी रही है....लेकिन हम सबने अपनी-अपनी हवस के कारण इसे मिलजुल कर अपना दुश्मन बना डाला है....प्रकृति को हमने सिर्फ़ अपने इस्तेमाल की चीज़ बना डाला है....और अपने इस्तेमाल के बाद अपने मल-मूत्र का संडास....ऐसे में यह कहाँ तक हमारा साथ निभा सकती है.....और जो यह हमारा साथ नहीं निभाती...तो यह हम पर कहर हो जाती है....कारण हम ख़ुद हैं...!और यह सब समझबूझकर भी यही सब करते रहने को अपनी नियति बना चुके हम लोगों को भविष्य में इस कहर से कोई भी नहीं बचा सकता.....उपरवाला भी नहीं...!!पानी भी तो हमारा दोस्त ही है....और हमारी तमाम कारगुजारियों के बावजूद भी हर साल हमारी मदद करने,हमें जीवन देने के लिए ही आता है !हम कब ख़ुद इसके दोस्त बनेंगे ??ख़ुद तो दुश्मनों के काम करना,और इसके एवज में कोई इसकी प्रतिक्रिया व्यक्त करे तो उसे पानी पी-पी कर कोसना, क्या यही मनुष्यता है??
प्यारे मनुष्यों,मैंने तुम्हें यही बताना है कि अपनी हवस को वक्त रहते लगाम दे दो ना...अपने लालच को थोड़ा कम कर दो ना....!!तुम्हारे जीवन में सुंदर फूल फिर से खिल उठेंगे....तुम्हारा जीवन फिर से इक प्यारी-सी बगिया बन जाएगा..!!जैसा कि तुम सदा से कहते रहे हो...."धरती पर स्वर्ग"...तो इस स्वर्ग को बनाने का भी यत्न करो....कि नरक बनाए जाने वाले कृत्यों से "स्वर्ग"नहीं निर्मित होता...कभी नहीं निर्मित होता....यही सच है....!!