Sunday, September 20, 2009
चोखेरबाली से लौटकर,दुनिया के पुरुषों,संभल जाओ.....!!!!
मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
यह जो विषय है....यह दरअसल स्त्री-पुरुष विषयक है ही नहीं....इसे सिर्फ इंसानी दृष्टि से देखा जाना चाहिए....इस धरती पर परुष और स्त्री दो अलग-अलग प्राणी नहीं हैं...बल्कि सिर्फ-व्-सिर्फ इंसान हैं प्रकृति की एक अद्भुत नेमत.. !!...इन्हें अलग-अलग करके देखने से एक दुसरे पर दोषारोपण की भावना जगती है....जबकि एक समझदार मनुष्य इस बात से वाकिफ है की इस दुनिया में सम्पूर्ण बोल कर कुछ भी नहीं है.....अगर पुरुष नाम का कोई जीव इस धरती पर अपने पुरुष होने के दंभ में अपना "....." लटकाए खुले सांड की तरह घूमता है...और स्त्रियों के साथ "....." करना अपनी बपौती भी समझता है....तो उसे उसकी औकात बतानी ही होगी....उसे इस बात के लिए बाध्य करना ही होगा की वह अपने पजामे के भीतर ही रहे....और उसका नाडा भी कस कर बंद रखे ....अगर वह इतना ही "यौनिक" है...कि उसे स्त्रियों के पहनावे से उत्तेजना हो जाती है...और वह अपने "आपे" से बाहर भी हो जाता हो...तो उसे इस "शुभ कार्य" की शुरुआत...अपने ही घर से क्यों ना शुरू करनी चाहिए....लेकिन यदि ऐसा संभव भी हो तो भी बात तो वही है.... कि उसके "लिंग-रूपी" रूपी तलवार की नोक पर तो स्त्री ही है... इसीलिए हर हाल में पुरुष को अपने इस "लिंगराज" को संभाल कर ही धरना होगा...वरना किसी रोज ऐसा हर एक पुरुष स्त्रियों की मार ही खायेगा...जो अपने "लिंगराज" को संभाल कर नहीं धर सकता...या फिर उसका "प्रदर्शन" नानाविध जगहों पर...नानाविध प्रकारों से करना चाहता हो.....!!
मैं देखता हूँ....कि स्त्रियों द्वारा लिखे जाने वाले इस प्रकार के विषयों पर प्रतिक्रिया में आने वाली कई टिप्पणियाँ [जाहिर है,पुरुषों के द्वारा ही की गयीं...]...अक्सर पुरुषों की इस मानसिकता का बचाव ही करती हुई आती हैं....तुर्रा यह कि महिला ही "ऐसे पारदर्शी और लाज-दिखाऊ-और उत्तेजना भड़काऊ परिधान पहनती है....बेशक कई जगहों पर यह सच भी हो सकता है....मगर दो-तीन-चार साल की बच्चियों के साथ रेप कर उन्हें मार डालने वाले या अधमरा कर देने वाले पुरुषों की बाबत ऐसे महोदयों का क्या ख्याल है भाई....!!
जब किसी बात का ख़याल भर रख कर उसे आत्मसात करना हो....और अपनी गलतियों का सुधार भर करना हो.. तो उस पर भी किसी बहस को जन्म देना किसी की भी ओछी मानसिकता का ही परिचायक है...अगर पुरुष इस दिशा में सही मायनों में स्त्री की पीडा को समझते हैं तो किसी भी भी स्त्री के प्रति किसी भी प्रकार का ऐसा वीभत्स कार्य करना जिससे मर्द की मर्दानगी के प्रति उसमें खौफ पैदा हो जाए....ऐसे तमाम किस्म के "महा-पुरुषों" का उन्हेब विरोध करना ही होगा....और ना सिर्फ विरोध बल्कि उन्हें सीधे-सीधे सज़ा भी देनी होगी...बेशक अपराधी किसी न किसी के रिश्तेदार ही होंगे मगर यह ध्यान रहे धरती पर हो रहे किसी भी अपराध के लिए अपने अपराधी रिश्तेदार को छोड़ना किसी दुसरे के अपराधी रिश्तेदार को अपने घर की स्त्रियों के प्रति अपराध करने के लिए खुला छोड़ना होता है...अगर आप अपना घर बचाना चाहते हो तो पडोसी ही नहीं किसी गैर के घर की रक्षा करनी होगी...अगर इतनी छोटी सी बात भी इस समझदार इंसान को समझ नहीं आती...तो अपना घर भी कभी ना कभी "बर्बाद"होगा....बर्बाद होकर ही रहेगा....किसी का भी खून करो....उसके छींटे अपने दामन पर गिरे बगैर नहीं रहते....!!
अगर ऐसा कुछ भी करना पुरुष का उद्देश्य नहीं है तो ऐसी बात पर बहस का कोई औचित्य....?? अगर इस धरती पर स्त्री जाति आपसे भयभीत है तो उसके भय को समझिये....ना कि तलवार ही भांजना शुरू कर दीजिये....!!
आप ही अपराध करना और आप ही तलवार भांजना शायद पुरूष नाम के जीव की आदिम फितरत है.....किंतु अपनी ही जात की एक अन्य जीव ,जिसका नाम स्त्री है....के साथ रहने के लिए कुछ मामूली सी सभ्यताएं तो सीखनी ही होती है....अगर आप स्त्री-विषयक शर्मो-हया स्त्री जाति से चाहते हो तो उसके प्रति मरदाना शर्मो-हया का दायित्व भी आपका है कि नहीं....कि आपके नंगे-पन को ढकने का काम भी स्त्री का ही है....??ताकत के भरोसे दुनिया जीती जा सकती है.....सत्ता भी कायम की जा सकती है मगर ताकत से किसी का भी भरोसा ना जीता जा सका है....ना जीता जा सकेगा.......!!ताकत के बल पर किसी पर भी किसी भी किस्म का "राज"कायम करने वाला मनुष्य विवेकशील नहीं मन जा जा सकता....बेशक वो मनुष्यता के दंभ में डूबा अपने अंहकार के सागर में गोते खाता रहे......!!दुनिया के तमाम पुरुषों से इसी समझदारी की उम्मीद में......यह भूतनाथ....जो अब धरती पर बेशक नहीं रहा....!!
Wednesday, September 16, 2009
मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
एक बार क्या हुआ कि जम्बुद्वीप के भारत नाम के इक देश में उल्लू नामक एक जीव का राज्य कायम हो गया.....फिर क्या था,पिछले सारे कानून बदल दिए गए...नए-नए फरमान जारी किए जाने लगे, बाकी चीज़ों की बात तो ठीक थी मगर जब "उलूकराज" ने जब राज्य की जनता को यह फरमान जारी किया कि अब से दिन को रात और रात को दिन कहा जाए....तब लोगों को यह बड़ा नागवार गुजरा.मगर चूँकि इस देश के लोगों को राजाज्ञा की किसी भी आदेश का नाफ़रमानी करने की आदत ही ना थी....सो टाल- मटोल करते हुए भी आखिरकार लोगों ने असंभव सी लगने वाली यह बात भी शिरोधार्य कर ली...!! आख़िर कार अपने पुरखों की संस्कृति और परम्परा की अवहेलना ये लोग कर ही कैसे सकते थे.....एक बात और भी थी कि इस देश के लोगों को अपनी समूची परम्पराओं,चाहे वो कितनी भी गलीच या त्याज्य क्यूँ ना हों,का पालन करना अपने देश के गौरव-भाल को ऊँचा रखने सरीखा प्रतीत होता था....इस कारण भी लोगों के मन में राजाज्ञा को ठुकराने की बात मन में नहीं आई !!
लेकिन प्रथम दिवस से ही इस आज्ञा को मानने में व्यवहारिक कठिनाईयां शुरू हो गयीं, सवेरे सोकर उठते ही राजा के सिपाहियों ने लोगों को वापस घर में धकेलना शुरू कर दिया कि जाओ अभी राज्य के अनुसार रात होनी शुरू हुई है और इस समय किसी को कोई भी कार्य करने की आज्ञा नहीं दी जा सकती....लोगों को हर हालत में अभी सोना ही सोना होगा.....अब बेचारे लोग-बाग़ जो अभी-अभी अपनी नींद भरपूर पूरी करके उठे ही थे,सब-के-सब बगलें झाँकने लगे....सोयें तो कैसे सोयें....मगर अब कुछ किया तो जा सकता नहीं था....लोगों में विरोध करने की शक्ति तो थी ही नहीं....वापस सोने को उद्यत हुए....मगर नींद किसी को भला कहाँ आती....दिन-भर करवट बदल-बदल कर लोग पैंतरे बदलने लगे और मारे भूख के सबका बुरा हाल......बच्चे आदि भूख की जोर से रोयें,सबको शौच की तलब ,मगर हर घर पर राजा के सैनिकों का पहरा......बाप-रे-बाप......तौबा-तौबा ......!!और जब शाम हुई तो घबरा कर सब लोग बिस्तर से उठना शुरू हुए और फटा-फट सब दिन-चर्या और "शौच-चर्या"के कार्य निपटाने शुरू किए लेकिन...... लेकिन अब सबके पेट की हालत नाजुक हो चुकी थी...... सबकी हालत यह कि सब के सब आलस से भरे और उंघते हुए दिखायी देते थे....कोई कार्य करना जैसे दूर की बात थी.....अब हालत यह कि कोई इधर अंगडाई ले तो कोई उधर,कोई उबासी ले,तो कोई बदन तोडे…कुल-मिलाकर यह कि किसी के भी लिए कोई कार्य करना अत्यन्त कठिन-सा हो गया,बल्कि असंभव प्रायः हो गया ……खैर एकाध-दिन तो लोगों के राम-राम करते यूँ ही बीते,फिर आदत तो पड़नी ही थी,सो इस सबकी आदत भी लोगों को पड़ने लगी…राजा के सिपाही जो सर पर सवार रहते थे…!!
दिक्कत तो यह भी थी ना कि बहुत सारे काम हर हालत में दिन में ही सम्भव थे…किसी का बाप भी उन्हें रात में संपन्न नहीं कर सकता था…जैसे खेती-बाड़ी पशुपालन इत्यादि…मगर महाराज उल्लू को समझाता तो कौन समझाता…सब जगह उसी के आदमी…..कौन जाने कि भला कौन उनका गुप्तचर ही निकल जाए…और उल्लू जी को इस बात से भी क्या मतलब कि खेती-बाड़ी किस तरह की जाती है,और इसी प्रकार और भी अन्य कार्य,जो सिर्फ़ दिन में ही निपटाए जा सकते हैं…दुनिया के सभी जीवों में यही एक बात समान रूप से लागू है कि अगर ख़ुद को कोई फर्क ना पड़ता हो तो दूसरा किस तरह जीता है इस बात से किसी को कोई मतलब नहीं होता….हर कोई यही चाहता है कि “दूसरे” के किसी कार्य से उसे ख़ुद को कोई व्यवधान ना पहुंचे….!!
उल्लू राजा ने सभी जगह अपने आदमी फिट कर दिए,हर महत्वपूर्ण जगह पर अपने "वफादारों"को बिठा दिया,कहीं दूसरे उल्लू…कहीं चमगादड़….कहीं लोमडी….कहीं सियार….और इस तरह सभी मंत्रालयों….इस प्रकार इस सभी सम्मानित पदों को इसी तरह के तमाम निशाचर जीव ही सुशोभित करने लगे….सर्वत्र अंधेरे या यूँ कहूँ कि "अंधेरगर्दी"का राज कायम हो गया….बेशक किसी भी मनुष्य को यह राज “सूट” नहीं कर रहा था….और ना ही यह सब उसके स्वभाव के अनुकूल ही था….मगर अपनी सुखपूर्वक रहने...अपनी दिनचर्या में किसी प्रकार का खलल ना पड़ने की इच्छा और अपनी कायरता के चलते वह इन परिस्थितियों में रहने पर ख़ुद को विवश कर लिया था….या यूँ कहूँ कि वह मनुष्यता ही भूल गया था….और धीरे-धीरे ख़ुद भी उल्लू या इसी भाँती का निशाचर याकि पशु ही बन चला था…सभी उल्लुओं को वाह महाराज....वाह महाराज कहने का आदि बन चला था… अपनी अकर्मण्यता के कारण वाह उन्हीं उल्लूओं की हुक्म-उदूली करता था,जिनके चलते उसका जीवन इस कदर तबाह हो गया था……!!....उन्हीं निशाचरों की चरण-वन्दना करता था...जिनको सारे वक्त गरियाता रहता था....या तो चुपके-चुपके या फिर "अपने ही लोगों या किसी मित्र के बीच"....!!
देखा जाए तो धरती के अनेक देशों में समय-समय पर इस प्रकार का उलूक-राज कायम होता रहा है किंतु कभी भी दुनिया के समस्त मनुष्य इसे दूर करने या भगाने के लिए "एक"नहीं हुए....कि यह मामला उनका नहीं था......!!इस प्रकार समय बीतता गया…इस उल्लू-राज में अनेक साधू-संत आदि आए और इस लगभग उल्लू याकि पशु बन चुके मनुष्य को उसकी सच्चाई…उसकी आत्मा का अहसास कराने हेतु अनेकानेक वचन और अन्य प्रकार की बातें कहकर उसे वापस मनुष्य बनाने की अथक चेष्टा की….मगर इसने अपने उल्लुपने को ही अपनी सच्चाई समझ कर इसी तरह जीने को आत्मसात कर लिया है….और कहते हैं पृथ्वी पर जम्बू-द्वीप में भारत नामक के उस देश में आज तक “उल्लू-राज” कायम है…और मज़ा यह कि उसके निशाचरी नागरिक किसी मसीहा की बात भी नहीं जोहते…ऐसा लगता है कि वो पशुओं की तरह जीने को ही अभ्यस्त हो चुके हैं…।!![वो देश कहाँ है…सो लेखक नहीं जानता…॥!!]
Monday, September 7, 2009
हम भूत बोल रहा हूँ...चीनी कम.....चीनी कम......!!
देखिये गरीब भईया जीहमन तो एक्क ही बतवा कहेंगे......एही की.....बहुते चीज़ दूर होन्ने से मीठा हो जाता है......आदमिवा से कोइयो चीज़ को दूर कर दीजिये ना....ऊ चीज्वा ससुरवा तुरंते मीठा हुई जावेगा....सरकारे भी एही भाँती सोचती है....झूठो का झंझट काहे करें...ससुरी चीनी को मायके भेज दो देखो आदमी केतनों पईसा खर्च करके ससुरा उसको,जे है से की लेयिये आवेगा.....!!
आउर देखिये बाबू ई धरती पर गरीबन को जीने-वीने का कोइयो हक़-वक नहीं है....उसको जरुरत अगर अमीरन को खेती करने,जूता बनाने,पखाना साफ़ करने,दाई-नौकर का तमाम काम करने,वेटर-स्टाफ का काम करने,चपरासीगिरी करने या मालिक का कोइयो हुकम बजाने का खातिर नहीं हो तो ई ससुर साला गरीब आदमीं का औकाते का है की साला ऊ इस सुन्दर,कोमल,रतन-गर्भा धरती पर जी सके.......!!
आउर ई बात के वास्ते दुनिया का तमाम गरीबन को अमीरन लोगन का धन्यावाद ज्ञापित करना चाहिए....और साला ई गरीब लोग है की कभी महंगाई,कभी का,कभी का.....ससुरा बात-बात पे झूठो-मूठो जुलुस-वुलुस निकाल-निकाल कर माहौल को एकदम गंधा देता है...चीनी तो एगो छोटका सा बात है....अबे ससुरा महँगा हो गया तो मत खाओ.......तुमको कोई बोला की तूम चीनी खायिबे करो......??एए फटफटिया बाबू लोगन अब,जे है से की ई सब बातन को तूम सब बंद भी करो.....साला महीना-दू महीना से इही सब चिल्ला रहे हो तूम सब...अरे तूम सबका मुह्न्वा दुखता नहीं का....तूम सब लोग थकते नहीं का.....!!
अरे भईया एतना तो समझो की ई सार ग्लोबल युग है.....आउर कोई भी बात धरती पर होता है तो ऊ एके सेकेण्ड में ई पार से ऊ पार पहंच जाता है.....देस का बदनामी तो होयिबे करता है.....आउर ससुरा उहाँ का ब्यापारी भी अपना चीनी को भारत के वास्ते आउर भी महँगा कर देता है....बोलो....दोहरा नुकसान हुआ की नहीं...!!....देस को ई नुक्सान किसके कारण हुआ.....तुमरे कारण....ससुरा फटफटिया माफिक हल्ला करते रहते हो.....का दाम है भईया चीनी का.....चालीस रुपिया....सो तूम हमको बताओ....ई एको डालर है.....????अभी भी एक डालर में कुछ रुपिया कम है ई.....साला किसी चीज़ में तुम सब अगर एको डालर भी खर्च नहीं कर सकते....तो हमरे पियारे से भईया.... तूम साला जिन्दा काहे को हो....अभी के अभी मरो साला तूम......!!
साला गू-मूत में रहने वाला.....नदी नाला में जीने वाला तूम सब लोग चीनी खायेगा.....???....चलो भागो यहाँ से.....हम पूछते हैं की हम चीनी खा-खाकर मर गए.....तब्बो भूत बने.....तूम सब चीनी नहीं खाकर मरेगा....तब का कुच्छ और बन जाएगा का....??बनना तो सब्बेको भूते है ना....!!तब काहे को चिंता लेता है की कौन का खाया....कौन का नहीं खाया.....??
आउर दूसरा बात ई भी हमरा सुनो बबुआ....जे है से की......ई ससुरा जो दुःख आदि जो है ना......ऊ ससुरा आदमी का करम-फल है...ईससे कोइयो नहीं बच सकता.....तूम का भगवान् हो......??तूम ससुरा का दरिद्र.....""नारायण""हो.....??अरे भईया काहे एतना फडफडाते हो....खुदो चैन से जीओ....आउर हम सरकार-अफसर-नेता आउर अमीर लोगों को चैन से जीने दो....हम लोग का मिटटी खाकर पईदा लियें हैं.....??
आउर भईया एग्गो आखिर बात.....आखिर जब तूम सबको हम सबका सुख नहीं देखा जाता....या तूम सब हम लोगो से घिरिना करते हो तो भईया....तूम सबके आस-पास जो भी नदी-कुँआ-तालाब-पोखर.....या जो भी कुच्छो हो...उसमें जाकर डूब मरो....काहे ससुर धरती का सांति-वान्ति भंग करते हो.....अमीरों का रंग में भंग करते हो.....हम कहते हैं की तूम लोग तब्बो नहीं मानोगे तो साला हम मिलेटरी बुलवा देंगे......तूम सब साला के ऊपर बूल-डोजर चढवा देंगे.....थोडा कह कर जा रहे है....तूम जियादा ही समझ लेना.....!!रोज आँखे हुई मेरी नम
रोज इक हादसा देखा....!!
मुझसे रहा नहीं गया तब
जब किसी को बेवफा देखा !!
मैं खुद के साथ जा बैठा
जब खुद को तनहा देखा !!
रूठ जाना मुमकिन नहीं
बेशक उसे रूठा हुआ देखा !!
गलियां सुनसान क्यूँ हैं भाई
क्या तुमने कुछ हुआ देखा !!
मैं उसे तन्हा समझता रहा
पर इतना बड़ा कुनबा देखा !!
आज तुझे बताऊँ "गाफिल"
धरती पर क्या-क्या देखा !!
Saturday, September 5, 2009
अरे भाई...जिंदगी तो वही देगी....जो...........!!
गर्द से भरा मेरा चेहरा होता !!
इतने लोगों का यही है फ़साना
इस भरी भीड़ में तनहा होता !!
बावफा होकर भी यही है जाना
इससे बेहतर था बेवफा होता!!
तिल-तिल मरने से तो अच्छा है
जहर खा लेने से फायदा होता !!
अक्सर गम में हम ये सोचा किये
मेरे बदले यां कोई दूसरा होता!!
अच्छा इस बात को भी जाने दो
कि यूँ भी होता तो क्या होता !!
अच्छा हुआ कि तनहा गुजर गया
भीड़ में मरता तो क्या हुआ होता !!
Friday, August 28, 2009
http://katrane.blogspot.com/2009/08/blog-post_से लौटकर
आज ब्लॉग्गिंग में कोई नौ महीने होने को हुए....मैं कभी किसी झमेले से दूर ही रहा....सच तो यह है....महीने-दो-महीने में ही मैंने ब्लोग्गरों में इस ""टोलेपन"" को भांप लिया था....और इस बात की तस्दीक़ रांची में हुए ब्लोग्गर सम्मेलन में भी भली-प्रकार हो गयी थी.........मैं किसी से ना दूर हूँ ना नज़दीक..........आज पहली बार किसी भी ब्लॉगर की पोस्ट पर इतनी ज्यादा देर ठहरा हूँ...!!....शायद आधे घंटे से भी ज्यादा.......पूरी पोस्ट और हर एक टिप्पणी पर ठहर-ठहर कर सोचते हुए बहुत से विचारों का कबाड़ा मैंने भी अपने दिमाग में इकठ्ठा कर लिया था.......और सोचा कि ना जाने क्या-क्या कुछ लिख मारूंगा.....मगर कविता वाचक्नवी जी की टिप्पणी पर पहुँचते ही सारी बातें अपने-आप ही व्यर्थ हो गयी......और यह सब समय की ऐसी-की-तैसी करना लगा.......बेशक आपके मुद्दे बिलकुल सही हैं....तथ्यवार हैं......और गंभीरता-पूर्वक "सोचनीय" भी....मगर जैसा की कविता जी ने कहा.....अन्त में, यही सत्य है कि जो जितना खरा होगा उतना दीर्घजीवी होगा। कालजयी होने के लिए काल पर जय पाने में समर्थ सर्जना अश्यम्भावी होती है वरना समय की तलछट में सब कुछ खो जाता है......सारी बातों का यही विराम है.......!!
.......मैं ऐसा मानता हूँ....जब तक आदमी है.....उसमें ""टोले"" बनाने का भाव रहेगा ही....क्योंकि ""टोलों"" में सुरक्षा होती है.......पहले पशुओं से थी....फिर प्रकृति से..... फिर अन्य समाजों से.......या अन्य किस्म के ""टोलों"" से.......फिर राज्यों या देशों से....!!!!.....और अब..... अब, अपनी ही भाषा बोलने वाले....लिखने वाले....की विभिन्नताओं से....विभिन्न किस्म की "सोचों" से....!!....रचनाकर्म सर्जन-धर्मिता या सृजनात्मकता नहीं.......बल्कि विभिन्न तरह के "वाद" हैं....!!.....ये "वाद"....क्योंकर बनाए हुए हैं या बनाए जाते हैं....किसके द्वारा बनाए जाते हैं....किसके द्वारा चलाये जाते हैं....कौन से लोग कौन से स्वार्थों से इन "वादों"को पोषते हैं.....सृजन-कर्म सिर्फ एक कला-कर्म ना होकर "वादों की बपौती" क्यों हैं.....और क्यों पसंदीदा चीज़ों के ""टोले"" निर्मित हो जाते हैं....???.....और उनसे विलग दूसरी चीज़ें क्यों उपेक्षा का शिकार बन जाती हैं....??....किन्हीं लोगों के निजी संस्मरण क्यों प्रशंसा पाते हैं...?? और क्यों अच्छी-से-अच्छी बात लोगों के गले नहीं उतरती....!!.....लोगों में देश को बनाने और उसके लिए कुछ कर जाने वाली संजीदा चीज़ें भी क्यों घर नहीं कर पाती...और अन्य मनोरंजनात्मक चीज़ें कैसे "लिफ्ट" होती हैं....!!....क्या लोगों में उपयुक्त संजीदापन नहीं है....या कि भारत के ब्लागर अभी उतने "समझदार" नहीं हुए हैं....या....कि अभी पाठकों का एक बड़ा वर्ग संजीदा चीज़ों से अभी-तक ""अ-जानकार"" है....ऐसे बहुत से ब्लॉग मेरी दृष्टि से होकर निकले हैं जिनके कंटेंट अद्भुत रहे हैं....यहाँ तक कि भाषा अथवा शैली भी....मगर वहां पर हमरे ब्लोगर टिप्पणीकार नहीं दिखे....और अन्य किसी हल्के-फुल्के ब्लॉग पर मस्ती से टिपियाते दिखाई दिए....!!! या कि एक दुसरे को टिपियाकर आत्मरति का सुख लेने का भाव है हम लोगों में.....यहाँ तक कि मैंने अब तक जो भी आलोचनात्मक टिप्पणियां की वहां विशुद्द रूप से सामने वाले को ऊपर उठाने के भाव से यथोचित उचित राय ही दी,कभी किसी को ब्लॉगपर गाते सुना तो उसके बेसुरेपन पर भी उसको चेताया....जबकि वहां बाकि सारे लोग उसकी प्रशंसा में "आत्मरत" थे....और तुर्रा यह कि उक्त ब्लोगर ने मेरे ब्लॉग पर ही आना छोड़ दिया....इससे यह भी इंगित है कि हम सिर्फ प्रशंसा ही चाहते हैं....और इसे पाने लिए हम दूसरों के ब्लॉग पर अपनी प्रशंसा का ""इनवेस्टमेंट""करते हैं....मगर मैं तो भूत हूँ........ मैं सदा ""जो है""....वैसा ही कहकर लौटता हूँ.....बेशक कुछ वक्त लगे....मगर सही बात समझने की तमीज ब्लोगर को आएगी ही.....!!.......
........आवेश.....जहां तक मैं जानता हूँ.....आदमी मनोरंजन पहले पसंद करता है....संजीदगी उसके बाद....और ब्लॉग्गिंग करने वाले लोग भगवान् की दया [अरे-रे-रे क्या बोल गया मैं....भगवान नहीं भाई{सांप्रदायिक हो जाएगा ना....!!}.....उपरवाले की दया] से ""पेट से भरे हुए हैं....और भरे पेट में दुर्भाग्य वश खामख्याली ज्यादा आती है....संजीदगी कम....अरे-अरे-अरे खुद मैं इससे अलग थोडा ना कर रहा हूँ.....फिर एक बात और भी तो है....कि उपरवाले सबके कान में यह फूंककर नीचे भेजा है कि भैया तू ही सबसे श्श्रेष्ठ है.....तुझसे बेहतर कोई नहीं....(तेरी कमीज़ से ज्यादा और कोई कमीज़ सफ़ेद नहीं.......!!)
आवेश भाई.....!!!......नेट पर हम सब अपने-अपने काम के बीच या सारा काम-धाम निबटा कर आते हैं.......काम के बीच हो या काम के बाद........दिल को मनोरंजन ही चाहिए होता है....और ब्लॉग्गिंग के नाम पर हम मनोरंजन ही कर रहे हैं........बल्कि साफ़-साफ़ कहूँ तो मनोरंजन ही कर रहे हैं.......ब्लॉग्गिंग तो इसके बीच कहीं-ना-कहीं हो जा रही है....मुई इतना के बाद भी ना होगी......तो भला कब होगी.......!!........इतना कहने के बाद मैं यह कह कर अपनी समाप्त करना चाहता हूँ....कि मेरी इस बात से कोई सहमत ना भी हो तो मुझे कतई माफ़ ना करे...क्योंकि यह तो खुला विद्रोह है भई....ऐसे बन्दे को तो ब्लॉग्गिंग की राह से सदा के लिए हटा ही देना ही चाहिए....!!.....और ऐसी बातों की चुनौतियों को मैं भूतनाथ अपने पूरे होशोहवास के साथ स्वीकार करता हूँ....!!.....आवेश तुमने शुरुआत कर दी है....तो इसकी इन्तेहाँ अब मैं करूंगा....बेशक मुझे यहाँ से हट ही क्यों ना जाना पड़े....!!
Tuesday, August 25, 2009
ऐ भारत !! चल उठ ना मेरे यार !!
"ए भारत ! उठ ना यार !! देख मैं तेरा लंगोटिया यार भूत बोल रहा हूँ.....!!यार मैं कब से तुझे पुकार रहा हूँ....तुझे सुनाई नहीं देता क्या....??"
"यार तू आदमी है कि घनचक्कर !! मैं कब से तुझे पुकार रहा हूँ....और तू है कि मेरी बात का जवाब ही नहीं देता...!!"
"अरे यार जवाब नहीं देता, मत दे !! मगर उठ तो जा मेरे यार !! कुछ तो बोल मेरे यार....!!"
"देख यार,हर बात की एक हद होती है...या तो तू सीधी तरह उठ जा,या फिर मैं चलता हूँ....तुझे उठाते-उठाते मैं तो थक गया यार....!!"
"हाँ,देख मेरे चलने का उपक्रम करते ही कैसा करवट लेने लगा है तू....अबे तू सीधी तरह क्यूँ नहीं उठ जाता है मेरे यार....बरसों से मैं तुझे जगा रहा हूँ....सदियों से मेरे और भी दोस्त तुझे उठाते-उठाते खुद ही उठ गए....!!...मगर तू है कि तुझ पर जैसे कोई असर ही नहीं होता.....क्यों बे तूने ये ऐसी-कैसी मगरमच्छ की खाल पायी है....??"
"मेरे दोस्त !! तुझसे बातें करना मुझे बड़ा अच्छा लगता है,इसीलिए तो बार-बार तेरे पास आ जाता हूँ मैं....और तू है कि इतना भाव देता है कि गुस्से से मेरी कनपटी तमतमा जाती हैं..देख मेरे जैसा प्रेमी तुझे कहीं नहीं मिलने वाला,और ज्यादा भाव मारेगा ना तो मुझे भी खो बैठेगा तू....!!"
"अरे...!! ये क्या....!! तेरी तो आखें डबडबा आयीं हैं....!! अरे यार,क्या हुआ तुझे....??अरे कम-से-कम मुझे तो कुछ बता मेरे यार !!"
"ओ...!! तो ये बात है !! यार यह तो कब से ही जानता हूँ....मगर यार मेरा बस ही कहाँ चल पाता है तेरे परिवार पर....तेरी संतानों पर !!...कहने को मैं भी एक तरह से तेरी संतानों में से ही एक हूँ...इतना चाहता है तू मुझे...!! उसके बाद भी तेरे परिवार के विषय में...तेरी पारिवारिक समस्याओं के विषय में कुछ कर ही नहीं पाता मैं...यार मैं क्या भी क्या करूँ, तेरे तमाम बच्चे इतने ज्यादा उच्च-श्रंखल हैं कि मेरा तनिक भी बस उनपर नहीं चल पाता...बल्कि वो मुझसे ऐसे किनाराकसी करते हैं कि जैसे मुझे पहचानते ही नहीं..जैसे मैं उनका कोई नहीं !!"
"क्या कहा,मैं अपनी पूरी ताकत से चेष्टा नहीं करता....??नहीं मेरे यार पूरी कोशिश करता हूँ....अब किसी से लड़-झगड़ थोडी ना सकता हूँ....अगर ऐसा करूँ तो मेरे दिन-रात...और यह सारी जिंदगी लड़ने-झगड़ने में ही ख़त्म हो जाये....मैं क्या करूँ यार...तेरे बच्चे ही बड़े अभिमानी,चालक,धूर्त,मक्कार,लालची और व्यभिचारी है...!!"
"नहीं यार !! मैं तेरे बच्चों को धिक्कार नहीं रहा...तेरा दोस्त हूँ मैं...तुझे वस्तु-स्थिति से मैं ही अवगत नहीं कराउंगा तो भला कौन कराएगा...??"
"देख !! इसमें ऐसा कोई क्रोधित होने की बात भी नहीं है...अपने परिवार के बारे में ऐसा कुछ सुनकर सभी को कष्ट होता है....वैसे यार मैं तेरे गुस्से का तनिक भी बुरा नहीं मानता मेरे यार...!! मैं तो तेरा प्रेमी हूँ और इस जन्म की आखिरी सांस तक तुझ से चिपका रहूंगा.....बल्कि बार-बार तेरे घर में ही जन्म लूँगा....!!
"हाँ एक बात और....वो यह कि मेरा तुझसे यह वादा है कि मैं कभी किसी जन्म में भी असल में तो क्या, सपने में भी तेरा मान-मर्दन करने या तेरी धन-संपत्ति लूटने,या तेरे बच्चों को आपस में लड़ाने,या तेरी बच्चियों के साथ व्यभिचार करने, या किसी भी रूप में तुझे लूटने-खसोटने के व्यापार या उपक्रम में नहीं लगूंगा....!!"
"नहीं यार मैं झूठ नहीं बोलता....और यह बात तू अच्छी तरह जानता भी है....ये अलग बात है कि मैं ऐसा कुछ कर नहीं पा रहा कि तू मुझपर गर्व कर सके....या ऐसा कुछ नहीं पा रहा कि तेरा मनोबल बढे....और तू पहले की तरह सोने-चांदी से लहलहा उठे...तू फिर दूध भरी नदियों से लबालब हो सके....तू फिर ऐसा इक पेड़ हो जाए...जिसकी हर टहनी पर सोने की चिडिया फुर्र-फुर्र करती बोलती-बतिया सके....!!"
"हाँ यार, तू ठीक कह रहा है.....अब तेरी पहली चिंता यह नहीं है, बल्कि यह है कि कैसे तेरी हर संतान को भोजन नसीब हो सके...कैसे तेरा हर बच्चा सुखपूर्वक जीवन-यापन कर सके....यार मेरे मैं जब भी तुझे ऐसा चिंतित देखता हूँ तो मेरी भी आँखें भर-भर आती हैं....मगर धन-बल से मैं इतना समर्थ ही कहाँ कि तेरी समस्त संतानों को यह सब प्रदान कर पाऊं....फिर भी मेरे यार, मुझसे जो भी बन पड़ता है...अवश्य करता हूँ...सच यार....भगवान कसम !!"
"देख हर जगह ऐसा होता है...और तू भी जानता है कि पाँचों उंगलियाँ बराबर तो नहीं ही होती....!!"
"हाँ यार...!! इतना अधिक फर्क कि अरबों बच्चे तो भूखे मरे...और कुछेक बच्चे इतना-इतना डकार जाएँ कि उनको हगने की भी जगह ना मिले....!!...बात तो तेरी एकदम दुरुस्त है... लेकिन कोई इस बारे में क्या कर सकता है....बता ही तो सकता है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा...और कोई हजारों-लाखों-करोडों-अरबों बार कहने के बावजूद ना माने तो...तो फिर कैसे क्या हो....कैसे यह सब कुछ बदले...कैसे यह सब ठीक हो....और कैसे तू सही तरह से हंस भी पाए....!!"
"हाँ यार तेरी बात बिलकुल सच्ची है, बल्कि सोलह तो क्या बीस आना खरी है कि ये जो बच्चे हैं...ये इस बात पर तो सदा गर्व करते हैं कि किसी जमाने में तू कितनी बड़ी कद-काठी का था...और उनके माँ-बाप के माँ-बाप....यानि कि उनके समस्त पूर्वज तुझपर अपने जीवन से बहुत-बहुत अधिक फक्र महसूस करते थे....बहुत अभिमान महसूस करते थे...मगर पता नहीं इन्हें यह क्यों नहीं समझ आता कि इनके पूर्वज भी तो अपने माँ-बाप यानि कि तेरे लिए...तेरा भाल ऊपर उठाने के कितना-कितना यत्न करते थे....कितना खटते थे...कितना व्याकुल रहते थे इस बात के लिए कि उनकी किसी गलती से तेरा सर नत-मस्तक ना हो जाए....!!"
"बेशक तू कुछ नहीं कह पाता यह सब मगर मैं तेरी बात समझता हूँ मेरे यार,मगर मैं सब समझता हूँ....तेरी हालत मुझसे कभी छिप नहीं पाती....और मैं तुझे यह वचन देता हूँ....कि आने वाले दिनों में मुझसे जो कुछ भी बन पड़ेगा....अवश्य-अवश्य-अवश्य करूंगा....करता तो मैं अब भी हूँ मेरे यार, भले सार्वजनिक-या सामाजिक रूप से या ढिंढोरा पीट-पीट कर नहीं,मगर ऐसा कभी भी नहीं हुआ कि मैंने तेरे बारे में कुछ भी बुरा सोचा हो...या तुझसे जान-बूझकर बुरा किया हो....या ऐसा कुछ भी करने की चेष्टा की हो जिससे मुझे तो फायदा और तुझे हानि होती हो....!!!!"
"अच्छा यार ,अब चलता हूँ मैं !! बच्चों को स्कूल से लेकर आना है ,लेकिन मैंने तुझसे जो वादा किया है ,वो मैं अवश्य निभाउंगा....और हाँ मैं यह भी कोशिश करूँगा कि तेरे इस आँगन में तेरे सारे बच्चों को एक साथ खडा कर दूँ कि तेरी सारी सतानें ना सिर्फ़ बिना लड़े-झगडे एक साथ रह सकें...बल्कि वो एक दूसरे के दुःख दर्द में शामिल भी हो सकें,एक समाज में रहते हुए कोई कहीं भी भूखा ना मर सके !!"
"एक काम मगर तो किसी भी तरह तू मेरा भी कर दे ना....वो यह कि तेरी संतानें तुझसे कम-से-कम इतना तो प्रेम करें कि उन्हें तेरी इज्जत अपनी इज्जत लगे....तेरा दर्द अपना दर्द लगे....और तेरी सारी संतानें उन्हें अपने ही सगे भाई-बहन....!! बस इतना भर हो जाए तो मेरा काम आसान हो जाएगा...!!"
"बाकि तू और मैं चाहे कुछ कर सके या ना कर सके...मगर मुझे यह उम्मीद है कि आखिरकार ये सारे लोग एक दिन ठोकर खाकर संभल जायेंगे....और सच बताऊँ मेरे यार....ठोकर खाकर भी ना संभले तो किधर जायेंगे....
जाते जाते एक शेर कहीं सुना था उसे तुझे सुना जाता हूँ...
मैंने तुझसे चाँद-सितारे कब मांगे....
रौशन दिल बेदाग नज़र दे या अल्लाह !!" अब चलता हूँ मेरे यार मेरे प्यार !!"
Wednesday, August 19, 2009
गार्गी जी के ब्लॉग से लौट कर.....{भूतनाथ}
".....पगली है क्या....हंस दे ज़रा....!! "
.....जीवन है ऐसा.....गम को भूला....!!
......लोगों का क्या....ना हों तो क्या...!!
.....गुमसुम है क्यूँ....सब कुछ भुला...!!
.....जीवन है सपना....बाहर आ जा....!!
....चीज़ों का क्या....सब कुछ मिटता....!!
.....खुद में गुम जा....खुद ही है खुदा....!!
....तुझे ए गार्गी....जीना समझा....!!
...रू-ब-रू है"गाफिल"....हाथ तो मिला॥!!
ओ गार्गी.....तेरे पिछले आर्टिकल में भी ऐसे ही विचारों की पदचाप मुझे सुनाई दी थी....मैंने मटिया दिया....किन्तु इस बार तूने आवाज़ देकर मुझे बुला ही लिया तो बताये देता हूँ....लेकिन मैं तुझे बताऊँ....तो क्या बताऊँ भला.....तेरे खुद के शब्दों में तो खुद ही किसी गहराई की खनक है....तू खुद जीवन के समस्त आयामों को समझती है... सच कहूँ तो जीवन में आने वाले तमाम दुःख हमें इक अविश्वसनीय गहराई प्रदान कर जाते हैं....और आगे आने वाली अन्य परिस्थितियों का और भी गहनता से मुकाबला करने के लिए....या कि उनका और और भी मुहं तोड़ जवाब देने के लिए....याकि जीवन बिलकुल ऐसा ही है....बिलकुल इक सपाट परदे-सा....तस्वीरों-सी घटनाएं आ रही हैं...और जा रही हैं....कोई भी चीज़ दरअसल अपनी नहीं हैं...यहाँ तक कि प्रेम भी नहीं....जिसको आप गहराई का सबसे विराट पैमाना समझते हो....और औरों को भी समझाते हो...!!....दरअसल सच कहूँ....तो इस विराटतम काल में इक मनुष्य के जीवन में घटने वाली तमाम घटनाएं कुछ हैं ही नहीं.....तो दरअसल कुछ है ही कहाँ...चीज़-चीज़ें-घटनाएं-आदमी या कुछ भी दृश्य का साकार होना....दरअसल है ही नहीं....!!और जब हम इसे देख पाते हैं....तब यह हमको चीज़ों-घटनाओं-मानवों को समझने का तमाम भ्रम मिट जाता है....और रह जाता है....सिर्फ-व्-सिर्फ अहम् ब्रहमास्मि का भाव मात्र.....!!....दरअसल अनंत काल में तमाम चीज़ों का होना और ना होना बराबर ही है...सोचो ना कभी....कि अरबों-खरबों (काल की इक छोटी-सी गणना) में हमारे ६०-७० वर्ष के जीवन का होना....!!....हा॥हा...हा...हा