".....पगली है क्या....हंस दे ज़रा....!! "
.....जीवन है ऐसा.....गम को भूला....!!
......लोगों का क्या....ना हों तो क्या...!!
.....गुमसुम है क्यूँ....सब कुछ भुला...!!
.....जीवन है सपना....बाहर आ जा....!!
....चीज़ों का क्या....सब कुछ मिटता....!!
.....खुद में गुम जा....खुद ही है खुदा....!!
....तुझे ए गार्गी....जीना समझा....!!
...रू-ब-रू है"गाफिल"....हाथ तो मिला॥!!
ओ गार्गी.....तेरे पिछले आर्टिकल में भी ऐसे ही विचारों की पदचाप मुझे सुनाई दी थी....मैंने मटिया दिया....किन्तु इस बार तूने आवाज़ देकर मुझे बुला ही लिया तो बताये देता हूँ....लेकिन मैं तुझे बताऊँ....तो क्या बताऊँ भला.....तेरे खुद के शब्दों में तो खुद ही किसी गहराई की खनक है....तू खुद जीवन के समस्त आयामों को समझती है... सच कहूँ तो जीवन में आने वाले तमाम दुःख हमें इक अविश्वसनीय गहराई प्रदान कर जाते हैं....और आगे आने वाली अन्य परिस्थितियों का और भी गहनता से मुकाबला करने के लिए....या कि उनका और और भी मुहं तोड़ जवाब देने के लिए....याकि जीवन बिलकुल ऐसा ही है....बिलकुल इक सपाट परदे-सा....तस्वीरों-सी घटनाएं आ रही हैं...और जा रही हैं....कोई भी चीज़ दरअसल अपनी नहीं हैं...यहाँ तक कि प्रेम भी नहीं....जिसको आप गहराई का सबसे विराट पैमाना समझते हो....और औरों को भी समझाते हो...!!....दरअसल सच कहूँ....तो इस विराटतम काल में इक मनुष्य के जीवन में घटने वाली तमाम घटनाएं कुछ हैं ही नहीं.....तो दरअसल कुछ है ही कहाँ...चीज़-चीज़ें-घटनाएं-आदमी या कुछ भी दृश्य का साकार होना....दरअसल है ही नहीं....!!और जब हम इसे देख पाते हैं....तब यह हमको चीज़ों-घटनाओं-मानवों को समझने का तमाम भ्रम मिट जाता है....और रह जाता है....सिर्फ-व्-सिर्फ अहम् ब्रहमास्मि का भाव मात्र.....!!....दरअसल अनंत काल में तमाम चीज़ों का होना और ना होना बराबर ही है...सोचो ना कभी....कि अरबों-खरबों (काल की इक छोटी-सी गणना) में हमारे ६०-७० वर्ष के जीवन का होना....!!....हा॥हा...हा...हा
अच्छा लेख है!
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