Friday, August 28, 2009

http://katrane.blogspot.com/2009/08/blog-post_से लौटकर

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
आज ब्लॉग्गिंग में कोई नौ महीने होने को हुए....मैं कभी किसी झमेले से दूर ही रहा....सच तो यह है....महीने-दो-महीने में ही मैंने ब्लोग्गरों में इस ""टोलेपन"" को भांप लिया था....और इस बात की तस्दीक़ रांची में हुए ब्लोग्गर सम्मेलन में भी भली-प्रकार हो गयी थी.........मैं किसी से ना दूर हूँ ना नज़दीक..........आज पहली बार किसी भी ब्लॉगर की पोस्ट पर इतनी ज्यादा देर ठहरा हूँ...!!....शायद आधे घंटे से भी ज्यादा.......पूरी पोस्ट और हर एक टिप्पणी पर ठहर-ठहर कर सोचते हुए बहुत से विचारों का कबाड़ा मैंने भी अपने दिमाग में इकठ्ठा कर लिया था.......और सोचा कि ना जाने क्या-क्या कुछ लिख मारूंगा.....मगर कविता वाचक्नवी जी की टिप्पणी पर पहुँचते ही सारी बातें अपने-आप ही व्यर्थ हो गयी......और यह सब समय की ऐसी-की-तैसी करना लगा.......बेशक आपके मुद्दे बिलकुल सही हैं....तथ्यवार हैं......और गंभीरता-पूर्वक "सोचनीय" भी....मगर जैसा की कविता जी ने कहा.....अन्त में, यही सत्य है कि जो जितना खरा होगा उतना दीर्घजीवी होगा। कालजयी होने के लिए काल पर जय पाने में समर्थ सर्जना अश्यम्भावी होती है वरना समय की तलछट में सब कुछ खो जाता है......सारी बातों का यही विराम है.......!!
.......मैं ऐसा मानता हूँ....जब तक आदमी है.....उसमें ""टोले"" बनाने का भाव रहेगा ही....क्योंकि ""टोलों"" में सुरक्षा होती है.......पहले पशुओं से थी....फिर प्रकृति से..... फिर अन्य समाजों से.......या अन्य किस्म के ""टोलों"" से.......फिर राज्यों या देशों से....!!!!.....और अब..... अब, अपनी ही भाषा बोलने वाले....लिखने वाले....की विभिन्नताओं से....विभिन्न किस्म की "सोचों" से....!!....रचनाकर्म सर्जन-धर्मिता या सृजनात्मकता नहीं.......बल्कि विभिन्न तरह के "वाद" हैं....!!.....ये "वाद"....क्योंकर बनाए हुए हैं या बनाए जाते हैं....किसके द्वारा बनाए जाते हैं....किसके द्वारा चलाये जाते हैं....कौन से लोग कौन से स्वार्थों से इन "वादों"को पोषते हैं.....सृजन-कर्म सिर्फ एक कला-कर्म ना होकर "वादों की बपौती" क्यों हैं.....और क्यों पसंदीदा चीज़ों के ""टोले"" निर्मित हो जाते हैं....???.....और उनसे विलग दूसरी चीज़ें क्यों उपेक्षा का शिकार बन जाती हैं....??....किन्हीं लोगों के निजी संस्मरण क्यों प्रशंसा पाते हैं...?? और क्यों अच्छी-से-अच्छी बात लोगों के गले नहीं उतरती....!!.....लोगों में देश को बनाने और उसके लिए कुछ कर जाने वाली संजीदा चीज़ें भी क्यों घर नहीं कर पाती...और अन्य मनोरंजनात्मक चीज़ें कैसे "लिफ्ट" होती हैं....!!....क्या लोगों में उपयुक्त संजीदापन नहीं है....या कि भारत के ब्लागर अभी उतने "समझदार" नहीं हुए हैं....या....कि अभी पाठकों का एक बड़ा वर्ग संजीदा चीज़ों से अभी-तक ""अ-जानकार"" है....ऐसे बहुत से ब्लॉग मेरी दृष्टि से होकर निकले हैं जिनके कंटेंट अद्भुत रहे हैं....यहाँ तक कि भाषा अथवा शैली भी....मगर वहां पर हमरे ब्लोगर टिप्पणीकार नहीं दिखे....और अन्य किसी हल्के-फुल्के ब्लॉग पर मस्ती से टिपियाते दिखाई दिए....!!! या कि एक दुसरे को टिपियाकर आत्मरति का सुख लेने का भाव है हम लोगों में.....यहाँ तक कि मैंने अब तक जो भी आलोचनात्मक टिप्पणियां की वहां विशुद्द रूप से सामने वाले को ऊपर उठाने के भाव से यथोचित उचित राय ही दी,कभी किसी को ब्लॉगपर गाते सुना तो उसके बेसुरेपन पर भी उसको चेताया....जबकि वहां बाकि सारे लोग उसकी प्रशंसा में "आत्मरत" थे....और तुर्रा यह कि उक्त ब्लोगर ने मेरे ब्लॉग पर ही आना छोड़ दिया....इससे यह भी इंगित है कि हम सिर्फ प्रशंसा ही चाहते हैं....और इसे पाने लिए हम दूसरों के ब्लॉग पर अपनी प्रशंसा का ""इनवेस्टमेंट""करते हैं....मगर मैं तो भूत हूँ........ मैं सदा ""जो है""....वैसा ही कहकर लौटता हूँ.....बेशक कुछ वक्त लगे....मगर सही बात समझने की तमीज ब्लोगर को आएगी ही.....!!.......
........आवेश.....जहां तक मैं जानता हूँ.....आदमी मनोरंजन पहले पसंद करता है....संजीदगी उसके बाद....और ब्लॉग्गिंग करने वाले लोग भगवान् की दया [अरे-रे-रे क्या बोल गया मैं....भगवान नहीं भाई{सांप्रदायिक हो जाएगा ना....!!}.....उपरवाले की दया] से ""पेट से भरे हुए हैं....और भरे पेट में दुर्भाग्य वश खामख्याली ज्यादा आती है....संजीदगी कम....अरे-अरे-अरे खुद मैं इससे अलग थोडा ना कर रहा हूँ.....फिर एक बात और भी तो है....कि उपरवाले सबके कान में यह फूंककर नीचे भेजा है कि भैया तू ही सबसे श्श्रेष्ठ है.....तुझसे बेहतर कोई नहीं....(तेरी कमीज़ से ज्यादा और कोई कमीज़ सफ़ेद नहीं.......!!)
आवेश भाई.....!!!......नेट पर हम सब अपने-अपने काम के बीच या सारा काम-धाम निबटा कर आते हैं.......काम के बीच हो या काम के बाद........दिल को मनोरंजन ही चाहिए होता है....और ब्लॉग्गिंग के नाम पर हम मनोरंजन ही कर रहे हैं........बल्कि साफ़-साफ़ कहूँ तो मनोरंजन ही कर रहे हैं.......ब्लॉग्गिंग तो इसके बीच कहीं-ना-कहीं हो जा रही है....मुई इतना के बाद भी ना होगी......तो भला कब होगी.......!!........इतना कहने के बाद मैं यह कह कर अपनी समाप्त करना चाहता हूँ....कि मेरी इस बात से कोई सहमत ना भी हो तो मुझे कतई माफ़ ना करे...क्योंकि यह तो खुला विद्रोह है भई....ऐसे बन्दे को तो ब्लॉग्गिंग की राह से सदा के लिए हटा ही देना ही चाहिए....!!.....और ऐसी बातों की चुनौतियों को मैं भूतनाथ अपने पूरे होशोहवास के साथ स्वीकार करता हूँ....!!.....आवेश तुमने शुरुआत कर दी है....तो इसकी इन्तेहाँ अब मैं करूंगा....बेशक मुझे यहाँ से हट ही क्यों ना जाना पड़े....!!

Tuesday, August 25, 2009

ऐ भारत !! चल उठ ना मेरे यार !!





"ए भारत ! उठ ना यार !! देख मैं तेरा लंगोटिया यार भूत बोल रहा हूँ.....!!यार मैं कब से तुझे पुकार रहा हूँ....तुझे सुनाई नहीं देता क्या....??"

"यार तू आदमी है कि घनचक्कर !! मैं कब से तुझे पुकार रहा हूँ....और तू है कि मेरी बात का जवाब ही नहीं देता...!!"
"अरे यार जवाब नहीं देता, मत दे !! मगर उठ तो जा मेरे यार !! कुछ तो बोल मेरे यार....!!"
"देख यार,हर बात की एक हद होती है...या तो तू सीधी तरह उठ जा,या फिर मैं चलता हूँ....तुझे उठाते-उठाते मैं तो थक गया यार....!!"
"हाँ,देख मेरे चलने का उपक्रम करते ही कैसा करवट लेने लगा है तू....अबे तू सीधी तरह क्यूँ नहीं उठ जाता है मेरे यार....बरसों से मैं तुझे जगा रहा हूँ....सदियों से मेरे और भी दोस्त तुझे उठाते-उठाते खुद ही उठ गए....!!...मगर तू है कि तुझ पर जैसे कोई असर ही नहीं होता.....क्यों बे तूने ये ऐसी-कैसी मगरमच्छ की खाल पायी है....??"
"मेरे दोस्त !! तुझसे बातें करना मुझे बड़ा अच्छा लगता है,इसीलिए तो बार-बार तेरे पास आ जाता हूँ मैं....और तू है कि इतना भाव देता है कि गुस्से से मेरी कनपटी तमतमा जाती हैं..देख मेरे जैसा प्रेमी तुझे कहीं नहीं मिलने वाला,और ज्यादा भाव मारेगा ना तो मुझे भी खो बैठेगा तू....!!"
"अरे...!! ये क्या....!! तेरी तो आखें डबडबा आयीं हैं....!! अरे यार,क्या हुआ तुझे....??अरे कम-से-कम मुझे तो कुछ बता मेरे यार !!"
"ओ...!! तो ये बात है !! यार यह तो कब से ही जानता हूँ....मगर यार मेरा बस ही कहाँ चल पाता है तेरे परिवार पर....तेरी संतानों पर !!...कहने को मैं भी एक तरह से तेरी संतानों में से ही एक हूँ...इतना चाहता है तू मुझे...!! उसके बाद भी तेरे परिवार के विषय में...तेरी पारिवारिक समस्याओं के विषय में कुछ कर ही नहीं पाता मैं...यार मैं क्या भी क्या करूँ, तेरे तमाम बच्चे इतने ज्यादा उच्च-श्रंखल हैं कि मेरा तनिक भी बस उनपर नहीं चल पाता...बल्कि वो मुझसे ऐसे किनाराकसी करते हैं कि जैसे मुझे पहचानते ही नहीं..जैसे मैं उनका कोई नहीं !!"
"क्या कहा,मैं अपनी पूरी ताकत से चेष्टा नहीं करता....??नहीं मेरे यार पूरी कोशिश करता हूँ....अब किसी से लड़-झगड़ थोडी ना सकता हूँ....अगर ऐसा करूँ तो मेरे दिन-रात...और यह सारी जिंदगी लड़ने-झगड़ने में ही ख़त्म हो जाये....मैं क्या करूँ यार...तेरे बच्चे ही बड़े अभिमानी,चालक,धूर्त,मक्कार,लालची और व्यभिचारी है...!!"
"नहीं यार !! मैं तेरे बच्चों को धिक्कार नहीं रहा...तेरा दोस्त हूँ मैं...तुझे वस्तु-स्थिति से मैं ही अवगत नहीं कराउंगा तो भला कौन कराएगा...??"
"देख !! इसमें ऐसा कोई क्रोधित होने की बात भी नहीं है...अपने परिवार के बारे में ऐसा कुछ सुनकर सभी को कष्ट होता है....वैसे यार मैं तेरे गुस्से का तनिक भी बुरा नहीं मानता मेरे यार...!! मैं तो तेरा प्रेमी हूँ और इस जन्म की आखिरी सांस तक तुझ से चिपका रहूंगा.....बल्कि बार-बार तेरे घर में ही जन्म लूँगा....!!
"हाँ एक बात और....वो यह कि मेरा तुझसे यह वादा है कि मैं कभी किसी जन्म में भी असल में तो क्या, सपने में भी तेरा मान-मर्दन करने या तेरी धन-संपत्ति लूटने,या तेरे बच्चों को आपस में लड़ाने,या तेरी बच्चियों के साथ व्यभिचार करने, या किसी भी रूप में तुझे लूटने-खसोटने के व्यापार या उपक्रम में नहीं लगूंगा....!!"
"नहीं यार मैं झूठ नहीं बोलता....और यह बात तू अच्छी तरह जानता भी है....ये अलग बात है कि मैं ऐसा कुछ कर नहीं पा रहा कि तू मुझपर गर्व कर सके....या ऐसा कुछ नहीं पा रहा कि तेरा मनोबल बढे....और तू पहले की तरह सोने-चांदी से लहलहा उठे...तू फिर दूध भरी नदियों से लबालब हो सके....तू फिर ऐसा इक पेड़ हो जाए...जिसकी हर टहनी पर सोने की चिडिया फुर्र-फुर्र करती बोलती-बतिया सके....!!"
"हाँ यार, तू ठीक कह रहा है.....अब तेरी पहली चिंता यह नहीं है, बल्कि यह है कि कैसे तेरी हर संतान को भोजन नसीब हो सके...कैसे तेरा हर बच्चा सुखपूर्वक जीवन-यापन कर सके....यार मेरे मैं जब भी तुझे ऐसा चिंतित देखता हूँ तो मेरी भी आँखें भर-भर आती हैं....मगर धन-बल से मैं इतना समर्थ ही कहाँ कि तेरी समस्त संतानों को यह सब प्रदान कर पाऊं....फिर भी मेरे यार, मुझसे जो भी बन पड़ता है...अवश्य करता हूँ...सच यार....भगवान कसम !!"
"देख हर जगह ऐसा होता है...और तू भी जानता है कि पाँचों उंगलियाँ बराबर तो नहीं ही होती....!!"
"हाँ यार...!! इतना अधिक फर्क कि अरबों बच्चे तो भूखे मरे...और कुछेक बच्चे इतना-इतना डकार जाएँ कि उनको हगने की भी जगह ना मिले....!!...बात तो तेरी एकदम दुरुस्त है... लेकिन कोई इस बारे में क्या कर सकता है....बता ही तो सकता है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा...और कोई हजारों-लाखों-करोडों-अरबों बार कहने के बावजूद ना माने तो...तो फिर कैसे क्या हो....कैसे यह सब कुछ बदले...कैसे यह सब ठीक हो....और कैसे तू सही तरह से हंस भी पाए....!!"
"हाँ यार तेरी बात बिलकुल सच्ची है, बल्कि सोलह तो क्या बीस आना खरी है कि ये जो बच्चे हैं...ये इस बात पर तो सदा गर्व करते हैं कि किसी जमाने में तू कितनी बड़ी कद-काठी का था...और उनके माँ-बाप के माँ-बाप....यानि कि उनके समस्त पूर्वज तुझपर अपने जीवन से बहुत-बहुत अधिक फक्र महसूस करते थे....बहुत अभिमान महसूस करते थे...मगर पता नहीं इन्हें यह क्यों नहीं समझ आता कि इनके पूर्वज भी तो अपने माँ-बाप यानि कि तेरे लिए...तेरा भाल ऊपर उठाने के कितना-कितना यत्न करते थे....कितना खटते थे...कितना व्याकुल रहते थे इस बात के लिए कि उनकी किसी गलती से तेरा सर नत-मस्तक ना हो जाए....!!"
"बेशक तू कुछ नहीं कह पाता यह सब मगर मैं तेरी बात समझता हूँ मेरे यार,मगर मैं सब समझता हूँ....तेरी हालत मुझसे कभी छिप नहीं पाती....और मैं तुझे यह वचन देता हूँ....कि आने वाले दिनों में मुझसे जो कुछ भी बन पड़ेगा....अवश्य-अवश्य-अवश्य करूंगा....करता तो मैं अब भी हूँ मेरे यार, भले सार्वजनिक-या सामाजिक रूप से या ढिंढोरा पीट-पीट कर नहीं,मगर ऐसा कभी भी नहीं हुआ कि मैंने तेरे बारे में कुछ भी बुरा सोचा हो...या तुझसे जान-बूझकर बुरा किया हो....या ऐसा कुछ भी करने की चेष्टा की हो जिससे मुझे तो फायदा और तुझे हानि होती हो....!!!!"
"अच्छा यार ,अब चलता हूँ मैं !! बच्चों को स्कूल से लेकर आना है ,लेकिन मैंने तुझसे जो वादा किया है ,वो मैं अवश्य निभाउंगा....और हाँ मैं यह भी कोशिश करूँगा कि तेरे इस आँगन में तेरे सारे बच्चों को एक साथ खडा कर दूँ कि तेरी सारी सतानें ना सिर्फ़ बिना लड़े-झगडे एक साथ रह सकें...बल्कि वो एक दूसरे के दुःख दर्द में शामिल भी हो सकें,एक समाज में रहते हुए कोई कहीं भी भूखा ना मर सके !!"
"एक काम मगर तो किसी भी तरह तू मेरा भी कर दे ना....वो यह कि तेरी संतानें तुझसे कम-से-कम इतना तो प्रेम करें कि उन्हें तेरी इज्जत अपनी इज्जत लगे....तेरा दर्द अपना दर्द लगे....और तेरी सारी संतानें उन्हें अपने ही सगे भाई-बहन....!! बस इतना भर हो जाए तो मेरा काम आसान हो जाएगा...!!"
"बाकि तू और मैं चाहे कुछ कर सके या ना कर सके...मगर मुझे यह उम्मीद है कि आखिरकार ये सारे लोग एक दिन ठोकर खाकर संभल जायेंगे....और सच बताऊँ मेरे यार....ठोकर खाकर भी ना संभले तो किधर जायेंगे....
जाते जाते एक शेर कहीं सुना था उसे तुझे सुना जाता हूँ...
मैंने तुझसे चाँद-सितारे कब मांगे....
रौशन दिल बेदाग नज़र दे या अल्लाह !!" अब चलता हूँ मेरे यार मेरे प्यार !!"

Wednesday, August 19, 2009

गार्गी जी के ब्लॉग से लौट कर.....{भूतनाथ}


हम्म्म्म्म्म्म्म.....ये गार्गी को क्या हो गया भई....??....ये तो ऐसी ना थी....!!....अब मैं देखता हूँ तो क्या देखता हूँ,कि मैं एक गीत हुआ गार्गी के बाल सहला रहा हूँ.....और उसे बस इक चवन्नी भर मुस्कुराने को कह रहा हूँ.....
".....पगली है क्या....हंस दे ज़रा....!! "
.....जीवन है ऐसा.....गम को भूला....!!

......लोगों का क्या....ना हों तो क्या...!!
.....गुमसुम है क्यूँ....सब कुछ भुला...!!
.....जीवन है सपना....बाहर आ जा....!!
....चीज़ों का क्या....सब कुछ मिटता....!!
.....खुद में गुम जा....खुद ही है खुदा....!!
....तुझे ए गार्गी....जीना समझा....!!
...रू-ब-रू है"गाफिल"....हाथ तो मिला॥!!
ओ गार्गी.....तेरे पिछले आर्टिकल में भी ऐसे ही विचारों की पदचाप मुझे सुनाई दी थी....मैंने मटिया दिया....किन्तु इस बार तूने आवाज़ देकर मुझे बुला ही लिया तो बताये देता हूँ....लेकिन मैं तुझे बताऊँ....तो क्या बताऊँ भला.....तेरे खुद के शब्दों में तो खुद ही किसी गहराई की खनक है....तू खुद जीवन के समस्त आयामों को समझती है... सच कहूँ तो जीवन में आने वाले तमाम दुःख हमें इक अविश्वसनीय गहराई प्रदान कर जाते हैं....और आगे आने वाली अन्य परिस्थितियों का और भी गहनता से मुकाबला करने के लिए....या कि उनका और और भी मुहं तोड़ जवाब देने के लिए....याकि जीवन बिलकुल ऐसा ही है....बिलकुल इक सपाट परदे-सा....तस्वीरों-सी घटनाएं आ रही हैं...और जा रही हैं....कोई भी चीज़ दरअसल अपनी नहीं हैं...यहाँ तक कि प्रेम भी नहीं....जिसको आप गहराई का सबसे विराट पैमाना समझते हो....और औरों को भी समझाते हो...!!....दरअसल सच कहूँ....तो इस विराटतम काल में इक मनुष्य के जीवन में घटने वाली तमाम घटनाएं कुछ हैं ही नहीं.....तो दरअसल कुछ है ही कहाँ...चीज़-चीज़ें-घटनाएं-आदमी या कुछ भी दृश्य का साकार होना....दरअसल है ही नहीं....!!और जब हम इसे देख पाते हैं....तब यह हमको चीज़ों-घटनाओं-मानवों को समझने का तमाम भ्रम मिट जाता है....और रह जाता है....सिर्फ-व्-सिर्फ अहम् ब्रहमास्मि का भाव मात्र.....!!....दरअसल अनंत काल में तमाम चीज़ों का होना और ना होना बराबर ही है...सोचो ना कभी....कि अरबों-खरबों (काल की इक छोटी-सी गणना) में हमारे ६०-७० वर्ष के जीवन का होना....!!....हा॥हा...हा...हा ...हा...कितना अहम् हैं इस आदमी-नुमा जीव का....(आदमी-नुमा इसलिए कह रहा हूँ....कि मैं आदमी को आदमी तक नहीं मानता.....क्योंकि ब्रहमांड में तमाम चीज़ें अपनी नैसर्गिकता के साथ हैं....सिर्फ और सिर्फ आदमी नामक यह जीव[ये नाम भी तो इसका खुद का दिया हुआ है]अ-नैसर्गिक है.....कृत्रिम....अहंकारी....अविवेकी[और खुद को विवेकशीलता का तमगा पहनाये हुए है....??लम्पट कहीं का....!!].....तो खुद के ज़रा-से जीवन को इतना गौरव-पूर्ण मानने वाला यह जीव....सचमुच मेरी नज़र में बड़ा ही अद्भुत है....!!....किसी भी बात से जिसका तर्क सहमत नहीं होता....किसी भी "चीज़"से जिसका ""....जी.....""नहीं भरता....!!.... क्या ऐसा कोई अन्य जीव इस पृथ्वी पर....??....गार्गी....जैसा कि हम जानते हैं....कोई भी चीज़ अपनी नहीं है....और यह भी कि सब कुछ क्षणभंगुर है...तो फिर सब बात तो यही समाप्त है....और इनसे जुड़े हुए विचार भी तब व्यर्थ ही हैं....विचार भी दरअसल हमारी अपनी कल्पना ही होते हैं,.....!!...इसका अर्थ यह भी तो नहीं कि जीवन ही व्यर्थ है....नहीं जीवन का केवल उतना ही अर्थ है....जितना कि हमारे शब्दों के अर्थ....!!.....अलबत्ता यह अवश्य हो कि जीवन की इस क्षण-भंगुरता को देखते हुए.....आदमी नाम के इस स्वनामधन्य जीव में कम-से-कम जीवन के प्रति इतनी तो तमीज हो.....कि वह ब्रहमांड की सारी चीज़ों,चाहे वो निर्जीव हों या सजीव,के प्रति तमीज दिखा सके....सबका सम्मान करना सीख सके....और इस बहाने अपनी नश्वरता का सम्मान भी कर सके....!!!!

Tuesday, August 11, 2009

सुनो-सुनो-सुनो.....गरीब देशवासियों सुनो...!!

सुनो-सुनो-सुनो....देश के समस्त गरीब देशवासियों सुनो....हम इस देश की सरकार बोल रहे हैं.....इसलिए तुम सब लोगन हमारी बात कान खोल कर सुनो....हम आपके लिए एक तोहफा लाये हैं...अभी-अभी हमने तुम सबके बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का विधेयक पास कर दिया है...अब आज से तुम सब लोगन अपने गरीब बच्चों को स्कूलों में भेज कर पढ़ा और लिखा कर नवाब बना सकते हो...अब तुम सब लोगन आने वाले दिनों में अमीर लोगों से टक्कर भी ले सकते हो......हालांकि हम जानते हैं कि करोडों-करोड़ बच्चों को मुफ्त में शिक्षा उपलब्ध करा पाना बिल्कुल ही टेढी खीर है....लेकिन इसके बावजूद यह बीडा हमने उठा ही लिया है....न-न-न-....अब आप हमसे यह ना पूछो कि इसके लिए लाखों-लाख करोड़ रूपये का धन कहाँ से आएगा....कम-अज-कम हम अभी तो यह नहीं जानते...मगर यह अवश्य जानते हैं....कि जब हमने यह विधेयक पास कर ही दिया है तो आगे का काम भी भली-भांतिपूर्वक निपटा ही लेंगे.....!!....बेशक कैसे....यह हमको तनिक भी मालूम नहीं....!!
दरअसल हम शुरू से क्रांतिकरी रहे हैं...और हमारी ही की हुई क्रांति से यह देश आजाद भी हुआ है....इसलिए बिना कुछ जाने-समझे ऐसे कदम उठाना हमारे स्वभाव में स्वाभाविक रूप से शुमार रहा है......यह क्रांतिकारी कदम भी हमने अपने स्वभाव की इसी क्रांतिकारी स्वाभाविकता के कारण ही तो उठाया है.....!!हमें मालूम नहीं कि इसके लिए संभवतः करोडों शिक्षक कहाँ से आयेंगे....हमें यह भी मालूम नहीं कि हमारे देश के वो करोडों लोग दो रोज आधे पेट जीते हैं....और भूखे ही सोते हैं....जो अपने तन को ढकने के लिए कपडा तक नहीं खरीद सकते....जो अपने बच्चों को दुकानों-कारखानों और अन्य जगहों पर कमाने के लिए झोंक देते हैं.....कि कम-अज-कम वो अपने पेट की आग को तो बुझा सके... वो अपने बच्चों को कैसे और क्यूँ स्कूल भेजेंगे....??.......उनके पेट को भरने और तन को ढकने के लिए हमारे इंतजामात और दायित्व क्या क्या हैं....हमको नहीं मालूम....!!
.....हमने तो यह भी फरमान जारी कर दिया है कि समूचे निजी स्कूलों को भी २५% बच्चों को मुफ्त शिक्षा देनी होगी....यह मुफ्त शिक्षा वो आपको क्यूँ देंगी...इसका कोई दायित्व-बोध या कर्त्तव्य बोध उनको है या नहीं....या इसका अहसास हमने उनको कराया है या नहीं....यह भी हमको नहीं मालूम....हमारा काम है फरमान जारी करना...क्योंकि हम रजा हैं....सो हमने फरमान जारी कर दिया है....सो उसे पूरा होना ही होगा....!!{और ना भी पूरा हो तो क्या फर्क पड़ता है,क्योंकि हम तो घोडे बेचकर मूत कर सोये हुए होंगे...कोई भी कानून किस गति या नियति को प्राप्त होता है,सो हमको भला क्या मालूम....!!}
गरीब बच्चे अगर गलती से निजी स्कूलों में पहुच भी गए तो वे क्या पहने हुए होंगे.....क्या स्टेशनरी-किताब-बस्ता उनके पास होगी.....क्या जूते आदि उनके पैर में होंगे....सो भी हमको नहीं मालूम....!!उनकी समूची फीस का वहन निजी स्कूल का वह प्रबंधन,जो शिक्षा को सबसे बेहतरीन और सबसे जबरदस्त मुनाफे का व्यवसाय बनाये हुए है, जिसकी पाँचों उंगलियाँ घी में और सर कडाही में है,क्यूँ करेगा ??.....और तो और,ये गरीब बच्चे,जो भाषा के नाम पर सिर्फ व् सिर्फ अपनी मातृभाषा,जिसका शहर वाले कान्वेंटी बच्चे ना तो अर्थ समझते हैं,और ना उसे सभ्य मानते हैं.....इन बच्चों के द्वारा ऐसी ही अबूझ भाषा बोले जाने पर इन बच्चों से कैसा उपहास पूर्वक बर्ताव करेंगे....इसकी कोई आशंका या सूचना हमारे पास नहीं है...और सबसे बड़ी बात तो यह कि इन नव-नौनिहालों द्वारा अंग्रेजी या हिंग्रेजी नहीं बोल पाने की विवशता पहले से मौजूद उन बच्चों के बीच इनकी क्या स्थिति पैदा करेगी.....सो भी हमको नहीं मालूम....हमने बस फरमान जारी कर दिया.....अब आप समझे बस......!!
इसी अंग्रेजी के कारण किसी जमाने में हमारे आज के महानायक,ना भूतो-ना भविष्यति,अमिताभ बच्चन को ना कॉलेज में दाखिला और ना नौकरी तक मिल पायी थी, ऐसा खुद बच्चन साहब ने फरमाया है....संजोग या दुर्योग से ऐसे बच्चन,जो अंग्रेजी नहीं जानते,गली-गली...मोहल्ले-मोहल्ले करोडों की संख्या में घूम रहे हैं....जिन्हें कभी महानायक भी नहीं बनना है.....बस किसी कारखाने की भट्टी में सदा के लिए झूंख जाना है....!!....ऐसी शिक्षा,जो अपनी ही मातृभाषा को भुलवा देती हो,उसे हेय बना देती हो,उसे बोले जाने को पीडादायक बना देती हो....अपने ही लोगों से खुद को सदा के लिए दूर कर देती हो,अपनी ही पहचान छिपाने को मजबूर कर देती हो....अपने ही देश के सम्मान की क़द्र करना भूला देती हो....अपनी ही भाषा के जानने वाले को उपहास का केंद्र बना डालती हो.....और कैरियर {कैरियर बोले तो लाखों की सालाना तनख्वाह का पैकेज,चाहे वो किसी देश में भी मिले,चाहे वो किसी भी कीमत पर मिले....!!??}
खैर ये वक्त इस ग्लोबल वक्त में इस प्रकार की टुच्ची बातें करने का नहीं है....इसलिए हे मेरे अमीर और शहंशाह मंत्रियों-अफसरों-सेठों के देश के गरीबतम लोगों हमने कानून बना दिया है...और आप नहीं जानते कि इसके लिए हमने और पिछली सरकारों ने ना जाने कितनी मेहनत और मश्शकत की है.....किसके लिए...आप ही सब के लिए ना......अब आप इसका लुत्फ़ उठाईये....उठाते ही जाईये.....और वह भी बिल्कुल मुफ्त....जी हाँ एकदम मुफ्त.....!!??

Thursday, August 6, 2009

ऐसी ही कार्रवाईयों से तो जल उठता है देश

ऐसी ही कार्रवाईयों से तो जल उठता है देश




पता नहीं क्यों इस देश की तमाम सरकारें यही समझती हैं कि उसके और उसके कर्ता-धर्ताओं के अलावे तमाम भारतवासी “चूतिये”हैं !!{दरअसल यहाँ मुझे इससे खराब कोई शब्द नहीं मिल रहा,मैं इससे भी ज्यादा गंदे शब्द का इस्तेमाल करना चाहता हूँ,इसके लिए पाठक मुझे माफ़ करें !!}
इस देश के तमाम खेवनहारों में यह कमी अनिवार्य रूप से पाई जाती है,कि जनता की आवाज़ को,उसकी इच्छा,आवश्यकता और अधिकारों की अनदेखी ही करते हैं, गोया जनता मनुष्य ना होकर जानवर हों,और उनके मुख से किसी भी अर्थ वाली आवाजें नहीं उठनी चाहिए!!और अगर जो उठीं,तो जनता को गोलियों से भूने जाने के तैयार रहना चाहिए !!यह सब देश के तारणहर्ताओं की चरमरा चुकी सोच का परिचायक है,यहाँ यह ध्यान रख लेना चाहिए कि चरमरा चुकी चीज़ों की या तो मरम्मत की जाती है,या फिर उन्हें बदल दिया जाता है,यह नहीं कि ऐसी राय देने वालों की जान ही ले ली जाये,मगर जैसा कि इस देश में जो ना हो जाए,वो कम है,सो हमें इस देश की तमाम सरकारों के द्वारा यही सब देखने को मिलता है !!
मणिपुर की राजधानी इम्फाल में कल यही हुआ,पुलिस द्वारा फर्जी मुठभेड़ में एक नागरिक की अमानुषिक हत्या के बाद हुए जनांदोलन और बंदी के आखरी दिन के अंत में सुरक्षा-बलों की गोली-बारी के पश्चात इम्फाल में अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लगा दिया गया!!यहाँ यह विदित हो कि उससे पहले आत्मसमर्पण कर चुके एक प्रदर्शनकारी युवक चोंग्खाम संजीत को सुरक्षा-बलों द्वारा सड़क पर घसीटकर एक मॉल में ले जाया गया था,जहां फिर उसकी निर्ममता-पूर्वक हत्या कर दी गयी थी!!इम्फाल में “अपुंगा लूप “नामक संगठन द्वारा इसी फर्जी मुठभेड़ के खिलाफ प्रदर्शन बुलाया गया था.मगर जैसा कि हम जानते हैं कि भारत नाम के इस देश की तमाम राष्ट्रीय और राज्य-सरकारें पहले किसी भी जनांदोलन को बेरहमी और भीषणता से कुचलती हैं,मगर जब इससे स्थितियां उनके नियंत्रण के और भी ज्यादा बाहर हो जाती हैं,तो संबद्द संगठनों को बातचीत का प्रस्ताव भेजती हैं,मगर ज्यादातर तो वह बातचीत की इच्छुक ही नहीं दिखती क्योंकि जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि जनता की आवाज़ को,उसकी इच्छा,आवश्यकता और अधिकारों को उसका “चुतियापा”,बेवजह का क्रंदन या अपने अंहकार पर चोट समझती है.और इसी का परिणाम है,देश में जगह-जगह पर हो रहे तरह-तरह के मुद्दों पर जनव्यापी आन्दोलन-प्रदर्शन या आखिरकार हिंसा !!
हो सकता है कि इनमें से बहुत सारे आन्दोलन फर्जी ही हों मगर अधिकाँश तो सच्चाईयों पर या तथ्यों पर आधारित ही होते हैं,जिनकी सरकारें अनदेखी ही करती जाती हैं,और समय के साथ इन प्रदर्शनों या आन्दोलनों का रूप कुरूप या वीभत्स होता चला जाता है,वर्तमान में मणिपुर इसकी जीवंत मिसाल है!!ज्ञातव्य हो कि यह वही मणिपुर है जहां कुछ ही समय बीता जब यहाँ की महिलायें भारत के सुरक्षा-बलों के अमानुषिकता-बर्बरता और मणिपुरी महिलाओं पर उनके यौनिक दुर्व्यवहारों के खिलाफ पूर्ण-नग्न होकर सड़क पर उतर आयीं थीं….!!क्या भारत जैसे पर्मप्रवादी देश में ऐसे दृश्य की कल्पना भी कर सकते है......?? यदि ऐसा वहां की महिलाओं ने किया तो आप खुद ही विचार करें कि वहां हमारे सुरक्षा बलों या कमांडों ने मणिपुरी महिलाओं के साथ ऐसा क्या सलूक किया होगा?? किसी भी घृणापूर्ण सुलूक के बगैर कहीं किसी देश या समाज की महिलायें ऐसा कठोर और शर्मनाक लगने वाला कदम नहीं उठा सकतीं…..!!मगर ऐसा लगता हैं कि हमारी सरकारों को सत्ता के रुतबे और ताकत के मद में किसी भी बात की,चाहे वह बात कितनी ही लोमहर्षक क्यों ना हो,कोई सुध ही नहीं रहती और यह बात यहाँ का अज्ञानी-से-अज्ञानी गंवार भी सरकार को बता या चेता सकता है!!इसका दूसरा अर्थ यह भी तो है हमारी सरकारें इनसे भी ज्यादा गंवार है{असभ्य और बेगैरत तो खैर वो पहले से ही हैं....!!}
जब सरकारों के कानों पर कोई जूं नहीं रेंगती या जब सरकारें कान में रुई डाल कर चैन की नींद सोई रहती हैं,उस वक्त भी,जब आम नागरिक में सरकारों के“चुतियापे” की वजह से भयंकर गुस्सा खदबदाता रहता है,तब सडकों पर वो सब होता है,जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता और सरकारें तो कतई नहीं….!! ......मणिपुर, झारखण्ड,छत्तीसगढ़ ,कश्मीर,बिहार,महाराष्ट्र,तेलंगाना,नदीग्राम……..!!.....कितने-कितने नाम लिए जाएँ.....कितने उदहारण गिनाएं जाएँ….!!अगर इस सबको गिनने या चेताने का कोई अर्थ ही ना निकले ……!!यदि ऐसा ही है तो आने वाले दिनों जनहित का कोई भी मुद्दा आन्दोलन किये बिना संसद तक पहुँचाया ही ना जा सके…..हिंसा किये बगैर कोई मुद्दा सुलझाया ही ना सके…..!! और दोस्तों मेरा विश्वास कीजिये कि यदि ऐसा हुआ तो सरकारें भी जनता के अतिशय क्रोध का शिकार बन जाएँगी……तब संसद भी नहीं रहेगी…..सच…..!!!!!
bhootnath गुरुवार, अगस्त 06, 2009